अयोध्या::गाजर घास के नियंत्रण पर वैज्ञानिकों ने की चर्चा ,आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में शस्य विज्ञान विभाग द्वारा 17वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह आयोजित किया गया। यह अभियान विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह के निर्देशन में शस्य विज्ञान प्रक्षेत्र पर आयोजित किया गया। गाजर घास के नियंत्रण को लेकर वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न उपायों पर चर्चा की। इस दौरान विभागाध्यक्ष डा. ए.के सिंह ने बताया कि फूल आने से पहले गाजर घास को जड़ से उखाड़ दें। इस घास के अत्यधिक प्रभाव से मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है। पशुओं के लिए भी यह घास अत्यधिक जहरीला होता है। उन्होंने कंपोस्ट हरी खाद व वर्मी कंपोस्ट, रसायनिक एवं जैविक विधि द्वारा इस खरपतवार को नियंत्रित करने का तरीका बताया। इंजीनीयर हरिश्चंद्र ने बताया कि गाजर घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी बीमारी डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार व दमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं। गाजर घास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियां खत्म होने लगतीं हैं। इसके कारण फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि गाजर घास का पौधा तीन से चार महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है और एक वर्ष में उसकी चार पीढ़ियां पूरी हो जाती हैं।
गाजर घास के नियंत्रण हेतु रासायनिक विधियों पर प्रकाश डालते हुए डा. सुशील कुमार ने बताया कि गाजर घास के साथ-साथ अन्य वनस्पतियों को नष्ट करने के लिए ग्लायफोसेट (1.0-1.5 प्रतिशत) और घास कुल की वनस्पतियों को बचाते हुए केवल गाजर घास को नष्ट करने के लिए 2, 4-डी (1.5 ली0) या मैट्रब्यूजिन (0.3-0.5 प्रतिशत) नाम के शाकनाशी का प्रयोग करें। उन्होंने बताया कि वर्षा ऋतु में गाजर घास पर जैविकीय नियंत्रण के लिए मैक्सिकन बीटल (जाइग्रोग्राम बाइकोलोराटा) नामक कीट को छोड़ना चाहिए। घर के आस-पास एवं संरक्षित क्षेत्रों में गेंदा के पौधों को लगाकर गाजर घास के फैलाव व वृद्धि को रोका जा सकता है।
जागरूकता सप्ताह के दौरान सह प्राध्यापक डा. नीरज कुमार, सहायक प्राध्यापक डा. राजेश कुमार छात्र-छात्राएं, मजदूर, किसान व विभाग के समस्त शिक्षक, वैज्ञानिक व कर्मचारी मौजूद रहे
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