अयोध्या, 24 अगस्त (हि.स.)। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज में 16वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह के दौरान वैज्ञानिकों ने बताया कि गाजर घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग (डरमेटाइटिस, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार एवं दमा) जैसी बीमारियां हो जाती हैं, यहां तक कि अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु भी हो सकता है।
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज के कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह के निर्देश में कृषि महाविद्यालय के शस्य विज्ञान विभाग द्वारा 16 वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह शस्य विज्ञान प्रक्षेत्र पर आयोजित किया गया था। शस्य विज्ञान प्रक्षेत्र के साथ-साथ विश्वविद्यालय परिसर मे भी वैज्ञानिकों, शिक्षको, छात्रो, मजदूरों एवं कर्मचारियों द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की एक घटक के रूप में गाजर घास मुक्त परिसर करने का प्रयास किया गया।
मंगलवार को उक्त कार्यक्रम के अंतर्गत गाजर घास के बारे में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विस्तृत चर्चा भी की गई तथा नियंत्रण के विभिन्न उपायों जैसे फूल आने के पहले पौधों को जड़ से उखाड़ना एवं कंपोस्ट, हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट बनाना तथा रासायनिक एवं जैविक विधि द्वारा इस खरपतवार को नियंत्रित करने का उपाय बताया गया।
यह भी बताया कि गाजर घास का पौधा तीन-चार महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा 01 वर्ष में उसकी चार पीढ़ियां पूरी हो जाती है। विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ अखिलेश कुमार सिंह ने बताया कि गाजर घास के नियंत्रण हेतु रासायनिक विधियों पर प्रकाश डालते हुए वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि गाजर घास के साथ अन्य वनस्पतियों को नष्ट करने के लिए ग्लायफोसेट (1.0 से 1.5 प्रशित )और घास कुल की वनस्पतियों को बचाते हुए केवल गाजर घास को नष्ट करने के लिए 2,4-डी (1.5 लीटर) या मेट्रिब्यूज़ीन (0.32- 0.5 प्रतिशत) नाम के शाकनाशी का का प्रयोग किया जाना चाहिए। यह भी सुझाव दिया गया कि वर्षा ऋतु में गाजर घास पर जैविक नियंत्रण के लिए मैक्सिकन बीटल (जाइग्रोग्रामा बाइकोलोराटा) नामक कीट को छोड़ना चाहिए तथा घर के आसपास एवं संरक्षित क्षेत्रों में गेंदा के पौध को लगाकर गाजर घास के फैलाव व वृद्धि को रोका जा सकता है।
हिन्दुस्थान समाचार/पवन
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