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महाराष्ट्र के सांगली में एक ही परिवार के नौ सदस्यों की आत्महत्या के पीछे एक खास धातु का नाम आ रहा सामने, जानें पूरी डिटेल

22 Jun 2022.05:51 AM

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। महाराष्ट्र के सांगली में फर्जी रेडियोधर्मी धातु खरीदने से बर्बाद हो चुके एक परिवार के नौ सदस्यों की आत्महत्या कर लेने की घटना के बाद मुंबई व दिल्ली समेत कई राज्यों की पुलिस इस तरह के धातु बेचने वाले गिरोहों का पता लगाना शुरू कर दिया है।

माना जा रहा है कि महानगर समेत देश के कुछ बड़े शहरों में इस तरह का गिरोह सालों से सक्रिय है, जो अमीर लोगों को करोड़ों मूल्य के रेडियोधर्मी हो की बात बताकर उन्हें लाखों रुपये में बेचकर ठगी का शिकार बना रहे हैं।

दिल्ली में कुछ साल पहले तक इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। सांगली में आत्महत्या के पीछे संभावित कारणों की जांच कर रही मुंबई पुलिस का कहना है कि ''राइस पुलर'' मामला दिल्ली समेत कई राज्यों में व्याप्त है। काल्पनिक उपकरणों को बेचने वाले गिरोहों से लोगों को कुछ लाख से लेकर कई करोड़ तक का भारी नुकसान हुआ है। उक्त धंधे से जुड़े ठगों ने ऐसा जाल फैला रखा है कि उनके न केवल छोटे व्यापारी या किसान बल्कि बड़े व्यापारी भी शिकार बन चुके हैं।

क्राइम ब्रांच के डीसीपी केपीएस मल्होत्रा का कहना है कि पिछले साल मार्च में आर्थिक अपराध शाखा ने गौतमपुरी के एक व्यापारी को एक रेडियोधर्मी धातु बेचने के बहाने 8.93 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप में महाराष्ट्र के एक ठग समेत गाजियाबाद में रहने वाले उसके एक सहयोगी को गिरफ्तार किया था। गाजियाबाद का रहने वाला सख्श लोगों को आकर्षित करने का काम करता था। व्यापारी को उक्त धातु की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 11 करोड़ रुपये प्रति इंच होने का भरोसा दिया था। पैसे लेकर गिरोह के सभी सदस्य अंडरग्राउंड हो गए थे।

फरवरी 2021 में एक व्यवसायी को ''हजारों करोड़ की दुर्लभ धातु'' होने का दावा करने वाले ठगों ने 11 लाख रुपये का चूना लगाया था। 2018 में अपराध शाखा ने उक्त धातु बेचकर कई व्यापारियों को करोड़ों की ठगी करने के आरोप में पिता-पुत्र की जोड़ी को गिरफ्तार किया था। उक्त मामले में ठगों ने पीडि़तों के सामने उपकरण दिखाने और परीक्षण करते समय विकिरण विरोधी सूट भी पहना था। पुलिस अधिकारी का कहना है कि रेडियोघर्मी धातु बेचने वाले गिरोहों का मुख्य लक्ष्य व्यापारी और किसान होता है।

पुलिस अधिकारी का कहना है कि फर्जी इरिडियम व रेडियम आदि से बने रेडियोधर्मी गुणों वाले उपकरणों को बेचने वाला गिरोह उपकरण की खरीद के लक्ष्य से 10 लाख रुपये से लेकर 10 करोड़ रुपये तक के शुरुआती निवेश की मांग करते थे। पीडि़तों के सामने दावा किया जाता है कि उक्त उपकरण अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, नासा या अन्य वैश्विक अंतरिक्ष निकायों द्वारा सैकड़ों या हजारों करोड़ में खरीद सकता है।

लोगों को विश्वास में लेने के लिए गिरोह के सदस्य रेडियोधर्मी धातु सही होने संबंधी विभिन्न भारतीय और विदेशी वैज्ञानिक संस्थानों से संबद्धता दिखाने वाले जाली दस्तावेज और आईडी कार्ड रखते हैं। रेडियोधर्मी धातु बेचने के लिए ठग बीएआरसी, इसरो, डीआरडीओ, नासा और अमेरिकन रेडियम सोसाइटी जैसी एजेंसियों से प्रमाण पत्र होने का दावा करते हैं।

पुलिस का कहना है कि 2011-2017 के बीच इस पद्धति का उपयोग करके धोखाधड़ी की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई थी, जिसमें देशभर में इस तरह के मामले मामले आए थे। कुछ मामले में पकड़े गए ठग महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बंगाल, फरीदाबाद, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे।

2018 में भारतीय रिजर्व बैंक ने लोगों को अगाह किया था कि वे किसी उपकरण द्वारा ''चावल खींचने वाले'' ठगों के शिकार न हों। ऐसे गिरोहों के पास मौजूद उपकरणों में जादुई गुण होते हैं।आरबीआई ने कहा था कि उसके संज्ञान में यह बात आई है कि कुछ ठग तांबे व इरिडियम से बने ''राइस पुलर'' नामक उपकरण लोगों को रेडियोधर्मी धातु कहकर मोटी कीमत में बेच रहे हैं। इसमें चावल के दानों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता होती है।

ऐसे ठग आरबीआई सोर्सिंग के सबूत को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं। लोगों को दावों के झांसे में न आने की चेतावनी देते हुए आरबीआई ने कहा था कि ऐसी घटनाओं की सूचना तुरंत पुलिस को दी जानी चाहिए।

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